पोवार को बन आरसा


 पोवारी बोली मा सरस छंद पर मोरी एक रचना
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(लगावली - गागालगा, गागालगा)
(मापनी - २२१२ २२१२, यति - ७,७)

🌷पोवार को बन आरसा🌷

पोवार की, कर बात तू
संस्कार की, कर बात तू |
देखाव जी, तू धार को
पोवार की, अवकात तू ||१||

से बात या, आकार की
पोवार को, संस्कार की |
चल ठाट लक, पोवार तू
या शान से, जी धार की ||२||

गड़कालिका, को भक्त तू
आटावजो, खुद रक्त तू |
पोवार को, उध्दारला
साहित्य मा, बन सक्त तू ||३||

तू प्रार्थना, कर भोज की
तू याद बी, कर ओज की |
तू कल्पना, विस्तार कर
तू बात कर, नव खोज की ||४||

रुतबा लका, देखाव तू
पोवार का, बी भाव तू |
संसारमा, बुद्धीलका
पोवार ला, सीखाव तू ||५||

देखाव तू, तोरा असा
बाना दिसे, विक्रम जसा |
कर्तव्य को, रस्ता परा
पोवार को, बन आरसा ||६||


✍️इंजी. गोवर्धन बिसेन "गोकुल"
       गोंदिया (महाराष्ट्र),

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