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पोवार समाज का अस्तित्व और उसकी मूल पहचान का संरक्षण

 पोवार समाज का अस्तित्व और उसकी मूल पहचान का संरक्षण          हमें सभी जातियों में एकता का भाव बिलकुल रखना चाहिए। सभी जातियों को संगठित होकर रहना जरुरी हैं। हम छत्तीस कुल के पोवारों ने हमेंशा से अपनी पहचान भी कायम रखी हैं और संगठित भी रहें हैं। 1700 के बाद मध्यभारत में और उसके पहले भी सैकड़ों वर्षों में। हां कुछ कुल मिलते बिछड़ते रहें हों पर अपनी नाम और पहचान को यथावत रखना भी बड़ी बात रही होगी।            1700 के आसपास हम लोग 36 कुल के संघ के रूप में थे फिर भोयर जाति ने खुद को पवार लिखने का प्रस्ताव पास कर हम पोवारों से विलीन होने का प्रस्ताव किया जिसका व्यापक विरोध भी था पर कुछ लोगों ने उनसे एकता स्वीकार कर ली। अब उनके सौ कुल और हमारे छत्तीस कुल अतीत में कितने जुड़े थे ये शोध का विषय हैं क्योंकि 1700 से 1965 तक दोनों जातियाँ में आसपास रहकर भी एक दूसरे से उतने ही सम्बन्ध थे जितने की पोवार और लोधी तथा कुनबी जाति से।          आज से कुछ साल पहले भोयर और पोवार जातियों को मिलाकर पवार(1982 से) और भोयरी और पोवारी बोली को मिलाकर पवारी(2018 से) बनाने का खेल चालू हुआ पर 2020 में ही इसका विश्लेषण हुआ