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बिह्या का पुरातन पोवारी रीति रिवाज

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 व्ही, बी,देशमुख                       रायपुर । "बिह्या का पुरातन रीति रिवाज l"              हमारो जाती समाज मा पुरातन समय मा शिक्षा को अभाव होतो।शिक्षा को अभाव मा कुरीति होनो बी स्वाभाविक होतो।     बिह्या बर मा होवन वाली कुरीति अना सुरीति हुनको बारो मा, श्रोत लक मोला, जो जानकारी मिली सेत उनको विषय मा लिखन को मन करेव,तुम्हरो सामने राखुसु। " बगन को ढेट्ट "         पुरातन समय मा नाहना टुरा टुरी उनको बिह्या कर देवत होतीन।असो बी आयकनो मा आइसे का बच्चा माय को पोट मा रव्हत होतो,तब बी बिह्या जोड़ लेत होतीन।घर अना समाज का सायना एक पक्ष घर बसके बिह्या तय कर लेत होतीन।बिह्या जुड़न को कारन दुहि पक्ष की स्वीकृति को जेवन तुरन्त होत होतो,ओला कव्हत होतीन फलानो घर बिह्या जुड़ गयेव अना बगन को ढेट्ट बी भय गयोव।जल्दी जल्दी मा बगन को साग बनत होतो। " कोदई "को रिवाज होतो,कोदई बी तय कर लेत होतीन।कोदई मा टुरा पक्ष,टुरी पक्ष ला एक बरात को जेवन को अन्न " चाउर दार " देत होतो,चाउर दार देनो ला कोदई देनो कव्हत होतीन।केतरो देनो से ओला वहाँ बस्या सायना तय करत होतीन,एला कोदई कव्हत

मध्य भारत के पोवार(पंवार)

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 #पोवार_प्रमारा_या_पँवार_जाति सन 1879 में प्रकाशित किताब *हिन्दू ट्राइब्स एंड कास्ट्स* लेखक *श्री एम ए शेररिंग* *पृष्ठ क्रमांक 93* में पोवारो का उल्लेख कुछ इस प्रकार आता है ---- (अंग्रेजी का हिंदी अनुवाद ) _मालवा का प्रमार या पोंवार साम्राज्य शायद सात या आठ सौ साल पहले नर्मदा घाटी के पश्चिमी हिस्से तक फैला हुआ था।  नागपुर स्पष्ट रूप से धार के प्रमारों द्वारा शासित था।_ _इन प्रांतों में बहुतसे कृषक लोग हैं।  वैनगंगा क्षेत्र में बसे पोवारो को मालवा के धारानगर के पोवारो की शाखा मानी जाती है, जिन्होंने सम्राट औरंगजेब  के शासनकाल में अपने देश को छोड़ दिया था।  कटक के एक अभियान में भोसलो को प्रदान की गई सहायता के पुरस्कार के रूप में, उन्हें वैनगंगा के पश्चिम में भूमि प्राप्त हुई।  वे तिरोरा, कामठा, लांजी और रामपायली क्षेत्र में, वेनगंगा जिले के उत्तरी भाग में भी फैले ;  और उन्होंने पचास साल पहले बंजर भूमि में प्रवेश किया।  पोवारो के कब्जे में अब तीन सौ छब्बीस गांव  है ।_ _पोवार विशेष रूप से कृषि के लिए समर्पित हैं, और कड़ी मेहनत और मेहनती के रूप में वर्णित हैं, लेकिन, उसी समय में, धोखेबाज, अ